मंगलवार, 17 नवंबर 2009

HINDI HI BHARAT KA BHAVISHYA HAI!

   महाराष्ट्र की विधान सभा में जो कुछ हुआ उससे पूरे देश में प्रतिक्रिया हो रही है | न केवल उत्तर भारत वरन भारत के दुसरे हिस्सों से भी इसको लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं| ऐसा नहीं है के मैं देर से जागा हूँ लेकिन मेरी प्रतिक्रिया विस्तृत होनी चाहिए शायद इसलिए मैंने इतना समय लगा दिया प्रतिक्रिया देने में| प्रतिक्रिया देने से पहले डिस्क्लेमर: इस लेख का राजनीती से कोई लेना-देना नहीं है और  लेखक के विचार पूर्णतः निजी हैं|
भाषा के नाम पर राजनीती की दुकान में कोई नया उत्पाद बाज़ार में नहीं आया हैं| दरअसल राजनीती के बाज़ार में एक नयी  दुकान खुली है और इसका नाम मनसे यानी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना हैं| और इस नयी दुकान के मालिक है श्रीमान राज ठाकरे जो पहले अपने चाचा श्री बाल ठाकरे जी की दुकान शिवसेना चलाने में उनकी सहायता किया करते थे| लेकिन राजनिति के बाज़ार में अत्यधिक त्रीव प्रतियोगिता होने के कारन मुनाफा कम होने लगा था और ऐसी स्तिथि में श्री राज ठाकरे के पास सिवाय अपनी नयी दुकान खोलने के आलावा कोई विकल्प भी नहीं था|  ऐसे में श्री राज ठाकरे के पास पुराने उत्पाद को बेचने के लिए कुछ नया विज्ञापन दिखाना आवयश्क था| फिर नयी-नयी दुकान होने के कारण कोई RISK लेना भी अनुचित था| भई नुकसान हुआ तो भरपाई मुश्किल हैं| इसलिए अपने ताऊ का विश्वसनीय और TIME TESTED नुस्खा ही लिया जाये तो कुछ मुनाफा हो सकता था| अब प्रश्न यह था की नफरत का कवर इस बार किसको बनाया जाये अब बॉम्बे अर्र ...... मुंबई में दक्षिण भाषी .....(उनकी भाषा में लुंगी) की संख्या तो अधिक रही नहीं और एक ही कवर में बार बार उत्पाद जल्दी बिकता नहीं हैं तो नफरत के लिए कोई नया कवर ढूँढा जाये | अंग्रेजी का विरोध करेंगे तो ये पत्रकार तुरंत टीवी और समाचार पत्रों में वो अंग्रेजी स्कूल दिखायेंगे (सामान्य ज्ञान के लिए बता दूं बॉम्बे SCOTTISH ) जहाँ मालिक के बच्चे पढ़ते हैं | और अंग्रेजी का विरोध करने से पिछड़ा दिखने का खतरा भी हैं| इसलिए इस बार नफरत के लिए नयी भाषा और नए लोग ढूंढें ....और वो हिंदी से अच्छा क्या हो सकता हैं| आखिर भारत की सबसे बड़ी संख्या में बोली जाने वाली भाषा हिंदी हैं| वैसे भी अंग्रेजी बोलने वालो की संख्या इस देश में ज्यादा नहीं हैं| ज़ाहिर हैं जिस भाषा के बोलने वालो की संख्या ज्यादा होगी उसका विरोध करने से लोकप्रियता भी उतनी अधिक मिलेगी| अरे भई ताऊ की दुकान भी तो COMPETITION में हैं और अपना उत्पाद भी कौन सा मुंबई के बाहर बेचना हैं| अब सवाल विज्ञापन का हैं तो विधान सभा और अबू असीम आज़मी से अच्छा और भी क्या सकता हैं | सत्ताधारी दल भी तो टैक्स में छूट देने का वायदा कर चुकी हैं| तो भैया .......भैया नहीं, हीं तो मनसे के आका नाराज़ हो जायेंगे हाँ तो भाऊ अपनी दुकान तो ठीक-ठाक चल निकली हैं | भगवन ने चाहा तो ताऊ की दुकान के भी ग्राहक अपनी दुकान से सौदा लेने लंगेंगे बस विज्ञापन अच्छा होना चाहिए| ऐसे भी अपन ने कौन सी दुकान धर्म-करम के लिए खोली हैं जो स्थान और समय का लिहाज़ रखा जाये | गरीबो और पिछडो के नाम पर इस देश में पहले से ही बहुत सी दुकाने हैं| आज १३ कल ६३ होंगे |
STATUTORY WARNING : आप कितना भी प्रयास करे हिंदी का प्रसार नहीं रोक सकते| कुछ वर्षो पहले दक्षिण के हमारे कुछ भाइयो ने भी किया था परिणाम कुछ नहीं निकला | उल्टा दिल्ली में आकर हिंदी में बात करनी पड़ रही हैं| आखिर क्या करे राजनीती का बाज़ार ही कुछ ऐसा हैं| एक बात आपको बता दे अच्छा आप सब नोट भी कर ले भाषा राजनीती और सरकारों से नाही बनते हैं और नाही चलते हैं भाषा को लोग चलते और बनाते हैं| हिंदी को राजनीतिज्ञों ने नहीं लोकप्रियता दिलाई हैं| हिंदी को लोकप्रियता हिंदी बोलने और लिखने के इच्छा रखने वाले और हिंदी से प्रेम करने वालो ने दिलाई हैं और नफरत कभी प्रेम से जीत नहीं सकता | भविष्य की इबारत हिंदी में लिखी हैं आप कुछ भी कर ले आप हिंदी के प्रसार को नहीं रोक पाएंगे और यदि इसका नमूना देखना हो अपने बच्चो को बात करता हुआ सुन ले| विदेशी व्यापारियों को को भी हिंदी की बढती शक्तियों का एहसास हो गया इसलिए पेप्सी ये प्यास हैं बड़ी और YOUNGISTAN कहकर अपने उत्पाद बेच रहा हैं क्योंकि भारत में उभरते बाज़ार की भाषा हिंदी हैं| हाँ तो भैय्या बॉम्बे( यह मैं अपना विरोध दर्ज करने के लिए कह रहा हूँ) या महाराष्ट्र भारत की सीमा से बहार तो है नहीं और जब इससे पाकिस्तान और अफगानिस्तान तो बच नहीं सके तो आप कैसे बच पाएंगे| इसीलिए हम कहते हैं अपने उत्पाद को बदल डालिए और देश प्रेम और हिंदी को अपनाइए फिर देखिये आपकी दुकान पूरे देश में चलेगी| हिंदी ही भारत का भविष्य हैं|