गुरुवार, 14 जनवरी 2016

मशाल: सभ्यता को बचाने के लिए

उन साहित्यकारो वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, इतिहासकारों, लेखको, चिंतकों, मज़दूरों के नाम जिन्होने दरबारी होने और सत्ता के सामने सर ख़म करने से इंकार कर दिया

जब कभी उदासी छाती हैं
और शंका की घटाए घिर आती हैं
तुम मन मे विश्वास जगाते हो
कि अभी सब खत्म नही हुआ हैं
कि अभी भी सांस चल रही हैं
कि अभी भी कुछ लोग खड़े हैं 
हाथों मे मशाल लिए
कि अभी भी आस का दीपक बुझा नही हैं
कि अभी भी सब बिके नही हैं
कि अभी भी प्रतिरोध बाकी है
कि अभी भी इंसानियत पशुत्व पर हावी है
कि अब भी क्रांति का सूरज उगेगा 
और मै और तुम हाथ थामे चल सकेंगें
तिमिर से ज्योति की ओर।