मंगलवार, 8 सितंबर 2009

प्रेम

एंटन चखोव की कहानी " लव" की प्रेरणा से रचित

क्या मैं प्रेम को सीमा में बाँध सकता हूं?
क्या प्रेम सीमा में बंध सकता हैं?
क्या शून्य के बाहर कुछ नही हैं?
क्या वृत्त के बाहर कुछ नही हैं?
शून्य इसलिए तो शून्य हैं,
क्योंकि वह सीमायें तय करता हैं,
शून्य कुछ और नही हैं,
भय हैं,
भय हैं अस्तित्व के कहीं और समाहित होने का,
तो क्या अस्तित्व सीमा में बंध सकता हैं?
तो क्या सीमित अस्तित्व शून्य नहीं हैं?
इसलिए मैंने शून्य को स्वीकर नही किया है,
इसलिए मैंने शून्य के विरुद्ध विद्रोह किया है,
क्योंकि मैं अपनी कल्पनाओं के पक्षी को
पिंजरे में बंधने नही दूँगा,
मैं प्रेम को सीमाओं में बंधने नही दूँगा,
और तोड़ दूँगा सब जंजीरे!