गुरुवार, 14 मई 2009

भारतीय राजनितिक पार्टियों में लोकतंत्र के कमी|

१५वे लोकसभा का चुनाव संपन्न हो चुका हैं और १६ मई को परिणाम भी जाएगा| चुनाव के सफलतापूर्वक संपन्न होने पर निशिंत रूप से चुनाव आयोग बधाई का पात्र हैं परन्तु इस सफलता से फूल कर कुप्पा होने का समय नही हैं| भारतीय लोकतंत्र को अभी और कई मील के पत्थर पार करने हैं| जो नई चुनौती मुंह फाड़े खड़ी हैं उनमे से एक महत्वपूर्ण चुनौती हैं राजनितिक पार्टियों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था का विकास| जब राजीनीतिक पार्टियों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था का आभाव होगा तो वो देश में लोकतंत्र को कैसे मज़बूत करेंगे? कोई राजनितिक पार्टी हो चाहे वो कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी या क्षेत्रीय राजनितिक पार्टियां सभी जगह भाई भतीजावाद हावी हैं| एक साधारण कार्यकार्ता पार्टी के उच्चतम पदों पर नही पहुंच सकता जबकि उच्च पदों पार बैठे व्यक्ति की संताने बिना किसी प्रतिभा और परिश्रम के पहुंच जाती हैं|
वो बच्चा जो उस मस्जिद में खेल रहा है,
अपनी मासूम दुनिया में गम है,
जो बड़े लोगो की दुनिया से अनजान है,
जिसकी दुनिया में बेपरवाही, बफिक्री नेमत हैं,
जिसके लिए मोहब्बत दीन हैं,
जिसकी भाषा में नफरत शब्द ही नही हैं ,
जुबान में जिसके पीर की तासीर हैं,
जो सम्प्रदायवाद क्या कोई भी वाद को नही जानता हैं,
जो दहशतवाद को नही पहचानता हैं,
जिसके लिए पीपल का पेड़ आसमान की सीढ़ी हैं,
जिसके लिए होली रंगों का तिहार हैं,
जिसके लिए ईद मिठाई का तिहार हैं,
एक दिन मस्जिद की दीवार से लगकर सीढियों पर चढ़ रहा था,
सोच रहा था अपने नन्हे हाथो से आज,aa
आसमान को छू लेगा,
अचानक एक बम फटा,
और वो बच्चा खुदा के पास था,
नीचे ज़मीन की तरफ देख रहा था ,
और ठहाके लगा कर ज़ोर से हंस रहा था,
कह रहा था बम पर मज़हब लिखा था,
पूछ रहा था इंसानों से एक सवाल,
मज़हब तो खुदा का रास्ता बताता है,
तो क्या बम हिंदू और मुसलमान बनाता हैं ?