आत्मलोचना
कभी-कभी ख़ुद के बारे में सोचकर हंसी आ जाती हैं। ऐसे मूरख हैं हम! लेकिन अगले ही पल सब कुछ ठीक हो जाता हैं और हम फिर निकल पढ़ते हैं वहीं गलतियाँ करने के लिए जिस पर अभी कुछ देर पहले ही हम धीर-गंभीर होकर विमर्श कर रहें थे। अब हमारे पास एक डॉकट्रीन हैं - इंसान तो ग़लतियों को पुतला हैं। उसके स्वभाव में ही ग़लती करना हैं। सचमुच आत्मलोचना जितना कठिन शब्द हैं यथार्थ में भी उतना ही दुरूह कार्य हैं। कहने में ये बड़ा ही आसान हैं कि अपनी पिछली ग़लतियों से सबक़ लेना चाहिए लेकिन क्या पिछली ग़लतियाँ एक जैसी थी, उसकी प्रकृति भी समान थी। नहीं। कोई भी दो ग़लतियाँ एक जैसी नहीं होती। आत्मलोचना के लिए मन का शांत होना पहली शर्त हैं। और यही सबसे कठिन समय होता हैं। ग़लती होने के बाद मन जल्दी शांत नहीं होता। और जब मन शांत होता हैं तो कई बार आत्मलोचना के लिए स्फूर्ति खत्म हो जाती हैं। शांत मन के बाद दूसरी शर्त हैं ख़ुद को डिफ़ेंड करने के हमारे स्वभाव पर काबू पाना। यहाँ भी मुश्किलें ही मुश्किलें हैं। हमें दूसरों की ग़लतियाँ बहुत जल्दी दिख जाती हैं और अपनी ग़लतियों को ढूँढने के लिए हमें माइक्रोस्कोप की ज़रूरत होती हैं। अब आते हैं तीसरी शर्त पर। क्या ये ज़रूरी हैं कि सारी ग़लतियाँ हमसे ही हो और दूसरों से कुछ भी नहीं। क्या आत्मलोचना वैक्युम में संभव हैं। उत्तर आपका ही शायद हाँ में ही होगा। आत्मलोचना के लिए एक ऐसे एनवायरनमेंट की आवश्यकता हैं जिसमें सभी व्यक्ति इस प्रक्रिया से गुज़रे। और यही पर सबसे बड़ी मुश्किल का सामना हैं। अधिकतर ऐसे हैं जिनके पास आत्मलोचना के लिए न समय हैं और न सोच। तो फिर आत्मलोचना एकपक्षीय नहीं हो सकता न। लेकिन क्या हम ये कहकर कि दूसरे नहीं कर रहें इसलिए हम भी नहीं करेंगे, चुप हो जाएँ। ये भी उतना ही ग़लत हैं। आत्मलोचना निरपेक्ष नहीं हो सकता। इसलिए हमें आत्मलोचना को परिस्थिति, व्यक्तियों और समूहो और सामर्थ्य के सापेक्ष ही आत्मलोचना की क्रिया को देखना होगा। आत्मलोचना की प्रक्रिया के उपरांत एक अहम हिस्सा उस मानसिक स्थिति को नियंत्रण करना भी हैं जब हम अपने प्रतिक्रिया देने की गति को काबू में कर लेते हैं। तब कहीं जाकर आत्मलोचना की प्रक्रिया अपने महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंचता हैं। लेकिन इस प्रक्रिया का अंत यही नहीं होता। बल्कि इसके बाद हमारे मानसिक और स्वाभाविक स्थिति में परिवर्तन आता हैं। अब सबसे आवश्यक हैं हमारा सजग होना। सजगता केवल ग़लती से बचने की नहीं बल्कि स्थिति की गहनता को समझते हुये अगले स्थिति के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने के लिए।तो साहब इतनी कठिन क्रिया के लिए कितने साधारण तरीके से हमें कह दिया जाता हैं आत्मलोचना के लिए। थोड़ा तो रहम कर दो भाई।