सोमवार, 24 सितंबर 2018


तुम अकेले क्यों सहती हो 

उदास रास्तों पर खामोशी से
तुम्हें चुप-चाप जब भी जाते देखा हैं
सब कुछ अकेले सहते देखा हैं
तब भी जब पिताजी डांटा करते थे
और अब भी जब जीजाजी डांटा करते हैं
तब भी जब हम भाई तुम्हें सुनाया करते थे
अब भी जब कि तुम्हारे बच्चे सुनाते हैं
तुम चुप-चाप सुन लेती हो इतना कुछ
ऑफिस में जब कभी बॉस सुनाते हैं
या घर आकर पत्नी सुनाती हैं
फट पड़ता हूँ मैं
नहीं देखता फिर पत्नी हो या बच्चे हो
पर तुमको देखा हैं मैंने चुप-चाप सुनते हुए
अकेले सब सहते हुए
दीदी कभी तो तुम भी फट पड़ो
हम सब पर गुस्सा निकालो
यूँ ही अंदर-अंदर दबे जाना
हम सब पुरुषों को भगवान बना देता हैं
तुम्हारा मौन रहना
सच पुछो तो  हमारा मर जाना हैं
एक बार तो दीदी प्रतिरोध करो
एक बार तो दीदी उद्घोष करो।
 
  # नफीस आलम
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 











 

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